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बच्चों से जुडे अरमान हैं कई
उन माओ में शामिल मैं भी हूं कहीं
खुशबू कि शीशियों में खुशियां हैं भरी
आखिरत के मुकाबले दुनिया नहीं हसीन
मुझे तालीम देनी सिर्फ़ यही है
दुनिया धोके का घर अफ़ज़ल आखिरत ही है
ठिकाना हमारा हम जान लें इसमें बेहतरी है
खाक से खाक को जाने में न देरी है
अदना हो के आला हो मिट्टी का ही बिछौना है
आलीशान हो के भी मालबूस दो ही गज़ का कपड़ा है
महारत हासिल हमें एक दूसरे को नीचा बताने में
तंकीद हो के ताकीद तकवेत है अपने गिरेबान के झांकने में
बच्चों कहूंगी मैं यही
करना नाज़ है तो पहले सीखो लिहाज़ सही