वो कहते है, नहीं आता मुझे रिश्तों का लिबाज पहनना। -२
उलझ कर टूट जाते है रिश्ते आपस में मुझसे,
तो कभी मन की फ़ांस ही काट जाती है इन्हें।
काश रिश्तों का कोई टेलर होता।
सिलाने थे मुझे रिश्ते कई।
सोचता हूँ हटा दूँ, उन फटे, बेरंग और धुंधले नातों को,
जो मुझपे जचते ही नहीं।
और बदल कर ले आऊं, नए वास्ते, मेरी पसंद के।
काश रिश्तों का कोई टेलर होता।
यहीं पास ही तो बस्ते हैं, सरोकार कई।
जो नजरों से अक्सर ओझल रहा करते हैं।
सिला लेता इन्ही नूतन रिश्तों के लिबाज ।
काश रिश्तों का कोई टेलर होता।
कहता, रफू कर दो, इन चहेते, पुराने नातेदारों को भी,
जो घायल हैं, ग़लतफहमी की चोट से।
ख्याल रहे, सिलाई में धागों का भेद मत कर देना।
काश रिश्तों का कोई टेलर होता।
नए रिश्तों में
अभिमान हो जिन रिश्तों पर, कॉलर उसका नाम रखना ।
चमकीले रिश्तों की जगह, बटन हो, उनका भी मान रखना ।
खास रिश्ते दिल के पास हो,सम्मान रखना ।
और जिन धागों से सिलाई हो, डोरी प्यार की हो
इस आखरी बात का भी ध्यान रखना।