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कम से कम फोन तो उठा देती
दिल की धड़कन जरा सुना देती।
रातभर सिर्फ करवटें बदली
याद खटमल बने जगा देती।
तू बुलाती मुझे अगर घरपे
तो यकीनन गलत पता देती।
जिंदगी भर ग़ुरूर से अच्छा
तू मुझे हाथ ही थमा देती।
चाह तेरी शराब बन जाती
और उसमें जहर मिला देती।
प्यार दौलत से ही नहीं मिलता
क्यों फटी जेब हो दिखा देती।
वो तड़प थी मिरी निगाहोंमें
तू हमेशा नजर चुरा देती।
सामने आ गया मैं गलती से
आख़री बार मुस्कुरा देती।
क्या है इंसानियत जरा तुझमें
ये ग़ज़ल पढ़ के ना जला देती।